भारत में फेक न्यूज़ और गलत सूचना आज हमारे समाज, राजनीति और लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने जहाँ सूचना तक पहुँच आसान की है, वहीं फर्जी खबरों ने सच और झूठ के बीच की रेखा धुंधली कर दी है। सवाल यह है कि जब हर कोई “सूचना का वाहक” बन चुका है, तब असली और नकली खबर में फर्क कैसे किया जाए?
आज जब सूचना एक क्लिक की दूरी पर है, तब “सच” और “झूठ” के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है। इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप ग्रुप्स — ये सभी प्लेटफार्म खबरे बाँटने का माध्यम बने हैं, लेकिन अक्सर वो खबरे सच्ची नहीं होतीं।फेक न्यूज़ और रेडिफाइन्ड डिज़इन्फ़ॉर्मेशन (भ्रामक सूचना) ने भारत की सामाजिक, राजनीतिक और सामुदायिक व्यवस्था को चुनौती दे दी है। इस लेख में हम जानेंगे—
- फेक न्यूज़ क्या है?
- भारत में उसकी स्थिति कैसी है?
- कौन से कारक उसे बढ़ावा देते हैं?
- उसका असर क्या हो रहा है?
- और सबसे महत्वपूर्ण — हम इसे कैसे रोक सकते हैं?
1. “फेक न्यूज़ / डिज़इन्फ़ॉर्मेशन” — परिभाषा और स्वरूप
1.1 फेक न्यूज़, मिसइन्फ़ॉर्मेशन और डिज़इन्फ़ॉर्मेशन में अंतर
- मिसइन्फ़ॉर्मेशन (misinformation) — जानकारी जो गलत है लेकिन बिना दुर्भावना के साझा की जाती है।
- डिज़इन्फ़ॉर्मेशन (disinformation) — जानबूझकर, राजनीतिक या अन्य उद्देश्य से फर्जी या भ्रमित करने वाली जानकारी फैलाना।
- फेक न्यूज़ — आमतौर पर समाचार के रूप में पेश की गई, लेकिन पूरी तरह झूठी या तोड़-मरोड़ कर बनाई गई खबरे।
वास्तव में, ये श्रेणियाँ अक्सर ओवरलैप होती हैं।
1.2 स्वरूप / टाइप्स
शोध बताते हैं कि फेक न्यूज़ अनेक रूप ले सकती है — टेक्स्ट, तस्वीर, वीडियो, ऑडियो या इनके संयोजन। Asian Journal of Public Opinion+1
कुछ सामान्य प्रकार:
- मॉन्टाज़ / एडिट किए गए वीडियो
- पुरानी तस्वीरों का गलत संदर्भ देना
- क्लिकबेट शीर्षक + विवादित दावे
- प्रचार / राजनीतिक एजेंडा वाले संदेश
भारत में विशेष रूप से, टेक्स्ट + इमेज और टेक्स्ट + वीडियो मिलाकर उपयोग किए जाते हैं क्योंकि ये अधिक तेजी से साझा होते हैं। Asian Journal of Public Opinion+1
2. भारत में फेक न्यूज़ की स्थिति — तथ्य और विश्लेषण
2.1 व्यापकता और ट्रेंड
- भारत को “डिज़इन्फ़ॉर्मेशन कैपिटल” कहा जा चुका है, क्योंकि 2020–21 में फेक न्यूज़ मामलों में 214% की वृद्धि दर्ज हुई। Communications of the ACM
- एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में लोगों में से लगभग 57% को “गलत जानकारी / फेक न्यूज़” का सामना करना पड़ता है। GGR
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा फैलाई गई गलत जानकारी का हिस्सा लगभग 77.4% है। www.ndtv.com
- एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के प्रथम-समय मतदाताओं में से लगभग 80% ने सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ देखी है। The Times of India
- एक अध्ययन में यह पाया गया कि भारतवासी अन्य देशों (यूएस, यूके, फ्रांस) की तुलना में झूठ-सच का अंतर पहचानने में अधिक संवेदनशील नहीं हैं। Hindustan Times
ये आंकड़े संकेत देते हैं कि भारत में सिर्फ फेक न्यूज़ का प्रसार नहीं हो रहा, बल्कि वह समाज की सोच में भी गहरा असर डाल रहा है।
2.2 खतरे और वास्तविक घटनाएँ
2.2.1 व्हाट्सएप लिंचिंग्स
भारत में व्हाट्सएप द्वारा फैलाए गए अफवाहों की वजह से कई मज़हबी-जातीय भीड़ हिंसाएं (लिंचिंग) हुई हैं। Wikipedia
उदाहरण के लिए, 2018 में असम की घटना, जहां दो लोगों को “बाल अपहरणकर्ता” बताया गया था — बाद में यह दावा फर्जी निकला। TIME+1
2.2.2 राज्य और कानूनी कदम
कुछ हालिया उदाहरण:
- कर्नाटक सरकार ने “फ़ेक न्यूज़ अधिनियम” प्रस्तावित किया, जिसमें फर्जी खबर फैलाने वालों के लिए सात वर्ष तक की जेल का प्रावधान है। इस प्रस्ताव के अस्पष्ट भाषण और दुरुपयोग की आशंका पर गंभीर चिंताएं उठी हैं। Reuters
- मेरठ में ड्रोन की झूठी खबरों के प्रसार पर 8 लोग जेल गए और 15 FIR दर्ज की गईं। The Times of India
- सुर्खियों में एक मामला जहाँ एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को बेंगलुरु की स्थिति बददिखाने वाली झूठी पोस्ट डालने पर गिरफ्तार किया गया। The Times of India
ये उदाहरण सिर्फ “संभावित” खतरों का नहीं, बल्कि वास्तविक परिणामों का आईना हैं।

3. क्यों फैलती है फेक न्यूज़? — कारणों का विश्लेषण
3.1 सोशल मीडिया एल्गोरिदम और वायरल प्रकृति
सोशल मीडिया कंपनियाँ ऐसी प्रणालियाँ (algorithms) बनाती हैं जो “engagement” (लाइक, शेयर, कमेंट) को बढ़ाती हैं। विवादित, उत्तेजक या असामान्य जानकारी अधिक भागीदारी दिलाती है और इस कारण फिर बड़ी पैमाने पर फैलती है।
3.2 डिजिटल साक्षरता की कमी
भारत में इंटरनेट उपयोग तेजी से बढ़ा है, लेकिन डिजिटल और मीडिया साक्षरता उसी अनुपात में नहीं बढ़ी। लोग स्रोत की जांच नहीं करते, तर्क नहीं लगाते, और अनदेखे डिबेट में फॉलो करने लगते हैं। Communications of the ACM+2Asian Journal of Public Opinion+2
3.3 भाषाई विविधता और स्थानीय मीडिया
भारत में 22 से अधिक आधिकारिक भाषाएँ हैं। टेक्नोलॉजी आधारित फेक न्यूज़ डिटेक्शन सिस्टम अधिकांशतः अंग्रेजी के लिए बने हैं। इसलिए गैर-अंग्रेजी भाषाओं में गलत सामग्री की पहचान करना कठिन है। Communications of the ACM+1
3.4 राजनीतिक और सामाजिक प्रेरणा
कई मामलों में, राजनीतिक दल, सामाजिक समूह या हितधारक विशिष्ट एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए झूठी जानकारी का उपयोग करते हैं। यह रणनीति समाज में धाराएं (polarization) बनाए रखने, विरोधियों को बदनाम करने या मतदाताओं को प्रभावित करने में काम आती है। Wikipedia+1
3.5 एन्क्रिप्टेड प्लेटफार्म और नियंत्रण की समस्या
व्हाट्सएप जैसी एन्क्रिप्टेड सेवा में, मध्यस्थ (platform) कंटेंट को सीधे मॉनीटर नहीं कर सकते। इसलिए गलत जानकारी को रोकना मुश्किल हो जाता है। arXiv
4. फेक न्यूज़ का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
4.1 सामाजिक अशांति और डर
गलत जानकारी समाज में डर, संदेह और घृणा पैदा करती है। सीमित सूचना के साथ, लोग गलती से “द्वेषपूर्ण समूह” के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
4.2 लोकतंत्र और जनमत प्रभावित करना
चुनावों, नीति विवादों और सार्वजनिक बहसों में फेक न्यूज़ मतदाताओं को गुमराह कर सकती है। वह तथ्यात्मक बहस को कमजोर करती है और पॉपुलिस्टी बयान ऊंची आवाज़ पाते हैं।
4.3 मीडिया विश्वसनीयता पर असर
जब मीडिया भी अनजाने या क्षुद्र गलतियाँ करती है, पाठक पत्रकारिता से विश्वास खो देते हैं। “सब मीडिया झूठ बोलते हैं” की धारणा फैल जाती है।
4.4 व्यक्तिगत सुरक्षा और मानहानि
गलत आरोप, फोटो / वीडियो एडिटिंग द्वारा किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना संभव है।
5. उपाय और समाधान — हम क्या कर सकते हैं?
5.1 मीडिया और डिजिटल साक्षरता बढ़ाना
- स्कूलों में मीडिया साक्षरता विषय पढ़ाया जाना चाहिए।
- नागरिकों को ट्रेनिंग, वर्कशॉप्स और रोडशो करना चाहिए कि कैसे स्रोत जाँचेँ।
- “शेयर करने से पहले 5 सवाल पूछें” जैसे चेकलिस्ट साझा करना उपयोगी।
5.2 fact-checking संस्थाएँ और प्लेटफॉर्म
भारत में कुछ विश्वसनीय fact-checking प्लेटफार्म हैं:
- Alt News Wikipedia
- DFRAC Wikipedia
- The Quint Fact Check, BoomLive, Factly, India Today Fact Check आदि Wikipedia+1
- PIB Fact Check — सरकारी पहल, विशेषकर सरकारी दावों / योजनाओं की सच्चाई जाँचने में। X (formerly Twitter)
पढ़ने वालों को जागरूक करना चाहिए कि वे इन प्लेटफार्मों पर जाकर संदेहास्पद खबरें सत्यापित करें।
5.3 तकनीकी समाधान: AI, ऑडिट सिस्टम, तिप्लाइन
- मशीन लर्निंग / NLP आधारित सिस्टम जो झूठी सामग्री की पहचान कर सकें — विशेष रूप से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में।
- उपयोगकर्ता तिप्लाइन (tipline) — जनता स्वयं शक करने वाली पोस्ट भेजें, जिसे fact-checker चेक करें। arXiv
- प्लेटफार्मों को पारदर्शिता (transparency) लानी होगी — एल्गोरिदमिक ऑडिट, रिपोर्टिंग डेटाबेस इत्यादि।
5.4 कानून, नीति और प्लेटफार्म जवाबदेही
- स्पष्ट और सटीक कानूनी परिभाषाएँ होनी चाहिए — कि “फेक न्यूज़” क्या है, और किस सीमा तक दायित्व है।
- प्लेटफार्मों पर नियंत्रण — झूठी पोस्ट्स को हटाना, चेतावनी टैग लगाना, प्रसार सीमित करना।
- राज्य स्तर पर बने प्रस्तावों को सावधानी से देखना चाहिए ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दमन न हो।
5.5 जिम्मेदार नागरिकता (Citizen Responsibility)
- खबर को पढ़ें, समझें, स्रोत देखें, फिर शेयर करें।
- यदि शंका हो, तो पहले fact-check साइट पर देखें।
- सोशल मीडिया पर जवाबदेही से टिप्पणी करें — झूठी खबर का विरोध करना भी एक काम है।
- अपने परिचितों / परिवार को जागरूक करें।
- यदि आपने कोई खबर पढ़ी और स्रोत नहीं मिला — क्या आप तुरंत शेयर करेंगे?
- एक खबर “viral” हो रही है, लेकिन स्रोत संदिग्ध है — आप क्या करेंगे?
- क्या सरकार / प्लेटफार्म अधिक नियंत्रण बढ़ाकर समस्या हल कर सकती है, या इससे नए दमन / सेंसरशिप खतरें आएँगे?
- क्या AI-उपकरण (fact verification bots) पूरी तरह भरोसेमंद हो सकते हैं?
- किस हद तक जनता की भूमिका महत्वपूर्ण है — सिर्फ मीडिया और प्लेटफार्मों पर निर्भर रहना पर्याप्त है?
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