यात्रियों की आँखों से भारत : दसवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विश्लेषण

Illustration of three historical travellers—Al-Biruni, Ibn Battuta, and François Bernier—observing 11th to 17th century India, showing urban life, marketplaces, traditional architecture, social hierarchies, and cultural diversity from their unique perspectives.

यात्रियों की आँखों से भारत को देखने पर हमें एक बिल्कुल अलग और अनोखी तस्वीर मिलती है। दसवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच आए विदेशी यात्रियों – अल-बिरूनी, इब्न बतूता और फ्रांस्वा बर्नियर – ने भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति का ऐसा विवरण दिया जिसे स्थानीय इतिहासकारों ने अक्सर अनदेखा किया।

बाहरी नज़रों से भारत

इतिहास केवल राजाओं और युद्धों की गाथा नहीं है, बल्कि यह समाज की गहराइयों, सामान्य लोगों के जीवन, उनके रीति-रिवाज़ और संस्कृति की भी कहानी है। भारतीय इतिहासकारों ने अक्सर दरबार और सत्ता की महिमा पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन इस बीच एक और स्रोत है, जो भारत को समझने में बेहद अहम है — विदेशी यात्रियों के यात्रा-वृत्तांत

दसवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच भारत आए अनेक यात्रियों ने यहाँ की भाषा, धर्म, जाति व्यवस्था, समाज, महिलाओं की स्थिति, व्यापार, कृषि और राजनीतिक ढाँचे का विस्तृत विवरण दिया। इनमें से तीन नाम सबसे प्रमुख हैं —

  • अल-बिरूनी (11वीं सदी) : वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टि से भारत को समझने वाले।
  • इब्न बतूता (14वीं सदी) : साहसी यात्री और जीवंत वर्णन करने वाले।
  • फ्रांस्वा बर्नियर (17वीं सदी) : यूरोप और भारत की तुलना कर राजनीतिक संदेश देने वाले।

इन तीनों यात्रियों के वृत्तांतों से हम मध्यकालीन भारत की एक बहुआयामी तस्वीर देख सकते हैं।

यात्रियों की आँखों से भारत : An educational illustration titled "Three Travellers in India" featuring three panels.
यात्रियों की आँखों से भारत

1. अल-बिरूनी और किताब-उल-हिंद : यात्रियों की आँखों से भारत को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने की कोशिश

जीवन और भारत से संबंध

अल-बिरूनी का जन्म 973 ई. में ख्वारिज़्म (उज़्बेकिस्तान) में हुआ। वे गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, भाषाविद और दार्शनिक थे। 1017 ई. में महमूद ग़ज़नी ने ख्वारिज़्म पर आक्रमण किया और विद्वानों को ग़ज़नी ले गया, जिनमें अल-बिरूनी भी शामिल थे।

यहीं से उनकी रुचि भारत में बढ़ी। उन्होंने संस्कृत सीखी और ब्राह्मण विद्वानों के संपर्क में रहकर वेद, पुराण, गीता और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों का अध्ययन किया।

यात्रियों की आँखों से भारत : किताब-उल-हिंद

यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गई और इसमें 80 अध्याय हैं। इसमें धर्म, दर्शन, त्यौहार, समाज, कानून, मापन प्रणाली, कृषि, चिकित्सा और ज्योतिष आदि का उल्लेख है।

उनकी शैली वैज्ञानिक थी:

  1. प्रश्न रखते।
  2. भारतीय परंपराओं का वर्णन करते।
  3. अन्य सभ्यताओं से तुलना करते।

यात्रियों की आँखों से भारत की जाति व्यवस्था पर विचार

  • उन्होंने भारत की वर्ण व्यवस्था को विस्तार से समझाया।
  • इसे फारस की चार वर्गीय व्यवस्था से तुलना की।
  • उन्होंने अस्पृश्यता और प्रदूषण–पवित्रता की धारणा को अस्वीकार किया, और कहा कि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है।

यात्रियों की आँखों से भारत: भाषा की कठिनाई

संस्कृत को उन्होंने बहुत व्यापक और जटिल बताया। उनके अनुसार, यह भाषा इतनी बहुआयामी है कि सही अनुवाद करना कठिन है।

यात्रियों की आँखों से भारत काआलोचनात्मक मूल्यांकन

  • सकारात्मक पक्ष: अल-बिरूनी ने भारत को समझने में वास्तविक ईमानदारी दिखाई और तुलनात्मक पद्धति अपनाई।
  • सीमा: उनकी जानकारी का बड़ा हिस्सा ब्राह्मण ग्रंथों पर आधारित था। निचले वर्गों और स्त्रियों की वास्तविक स्थिति उनके विवरण में कम है।

👉 निष्कर्ष: अल-बिरूनी का काम भारत के अध्ययन का शुरुआती “वैज्ञानिक प्रयास” था।

2. इब्न बतूता और रिहला : रोमांच से भरा भारत का चित्रण

जीवन परिचय

इब्न बतूता का जन्म 1304 ई. में मोरक्को के तांगीर नगर में हुआ। वे इस्लामी क़ानून (शरीअत) के विद्वान थे, पर जीवन का असली जुनून उन्हें यात्राओं में मिला।

22 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और 30 वर्षों तक लगातार यात्राएँ कीं। उन्होंने उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, भारत, श्रीलंका, मालदीव, बंगाल, सुमात्रा और चीन तक यात्रा की।

यात्रियों की आँखों से भारत में आगमन और करियर

  • 1333 ई. में भारत पहुँचे।
  • सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उन्हें क़ाज़ी नियुक्त किया।
  • लेकिन राजनीतिक कारणों से उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
  • बाद में चीन दूतावास के लिए भेजे गए।

यात्रियों की आँखों से भारत का वर्णन

  1. शहर और बाज़ार
    • दिल्ली को सबसे बड़ा और सुदृढ़ नगर बताया।
    • दौलताबाद के तरबाबाद बाज़ार का रोचक वर्णन किया, जहाँ महिला गायक-नर्तक प्रदर्शन करती थीं।
  2. कृषि और व्यापार
    • भूमि की उपजाऊ शक्ति और दोहरी फसल प्रणाली पर आश्चर्य जताया।
    • भारतीय कपड़े, खासकर मलमल और रेशम, अरब और एशिया में निर्यात होते थे।
  3. डाक व्यवस्था
    • घुड़सवार डाक (उलूक) और पैदल डाक (दावा) का विवरण दिया।
    • सिंध से दिल्ली समाचार पैदल डाक द्वारा 5 दिन में पहुँच जाता था।
  4. संस्कृति की विचित्रताएँ
    • नारियल को “मनुष्य के सिर” जैसा बताया।
    • पान की आदत को विस्तार से समझाया।
  5. यात्रा की कठिनाइयाँ
    • डाकुओं के हमले और बीमारी का सामना किया।

यात्रियों की आँखों से भारत का आलोचनात्मक मूल्यांकन

  • सकारात्मक पक्ष: इब्न बतूता ने सामाजिक जीवन, बाज़ार और संस्कृति को रंगीन और जीवंत अंदाज़ में दर्ज किया।
  • सीमा: उनकी शैली रोमांचक थी, इसलिए उन्होंने कई बार बढ़ा-चढ़ा कर लिखा।

👉 निष्कर्ष: इब्न बतूता का विवरण मध्यकालीन भारतीय नगरों और व्यापारिक जीवन को समझने का अनमोल स्रोत है।

3. फ्रांस्वा बर्नियर : भारत और यूरोप की तुलना

जीवन और भारत प्रवास

फ्रांस्वा बर्नियर (1620–1688) फ्रांसीसी चिकित्सक और दार्शनिक थे। 1656 से 1668 तक वे भारत में रहे। शाहजहाँ और औरंगज़ेब के समय दरबार से जुड़े और दारा शिकोह के निजी चिकित्सक रहे।

यात्रियों की आँखों से भारत का मूल्यांकन

  1. भूमि व्यवस्था
    • उनके अनुसार भारत में सारी ज़मीन सम्राट की थी।
    • इससे किसान निर्धन और असहाय थे।
    • यूरोप की निजी संपत्ति व्यवस्था को उन्होंने श्रेष्ठ बताया।
  2. समाज
    • उन्होंने कहा कि भारत में “मध्यम वर्ग” नहीं है, केवल अमीर और गरीब हैं।
    • इसे उन्होंने “यूरोप की तुलना में पिछड़ा” बताया।
  3. सती प्रथा
    • उन्होंने एक 12 वर्षीय विधवा को जबरन जलाए जाने का विवरण दिया।
    • इसे पश्चिम–पूर्व के अंतर का प्रतीक माना।
  4. कला और शिल्प
    • भारतीय मलमल, रेशम, आभूषणों की प्रशंसा की।
    • लेकिन कहा कि कारीगरों में नवाचार की कमी है क्योंकि लाभ शाही खजाने में जाता है।

यात्रियों की आँखों से भारत का आलोचनात्मक मूल्यांकन

  • सकारात्मक पक्ष: बर्नियर ने भारत की भूमि और सामाजिक संरचना पर गहराई से विचार किया।
  • सीमा: उनका उद्देश्य यूरोप की श्रेष्ठता साबित करना था, इसलिए भारत को अक्सर नकारात्मक रूप में पेश किया।

👉 निष्कर्ष: बर्नियर का वृत्तांत यूरोपीय औपनिवेशिक दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है।

4. स्त्रियाँ, दास और श्रम

दास प्रथा

  • दास खुले बाज़ारों में बिकते थे।
  • इब्न बतूता ने दासों को उपहार स्वरूप दिया।
  • महिला दास दरबार में संगीत और नृत्य करती थीं।

स्त्रियों की भूमिका

  • ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्त्रियाँ सक्रिय थीं।
  • व्यापारी परिवारों की महिलाएँ अदालत में मुकदमे तक लड़ती थीं।
  • लेकिन सती जैसी प्रथाओं ने उनकी स्वतंत्रता पर प्रश्न खड़े किए।

5. यात्रियों के वृत्तांत : कितने विश्वसनीय?

  1. अल-बिरूनी – वैज्ञानिक दृष्टि, पर उच्च वर्ग तक सीमित।
  2. इब्न बतूता – जीवंत चित्रण, पर अतिशयोक्ति भी।
  3. बर्नियर – भारत को यूरोप के मानकों से तौलना।

👉 इसलिए यात्रियों के वृत्तांत आंशिक सत्य हैं। इन्हें स्थानीय शिलालेखों, साहित्य और पुरातात्विक साक्ष्यों से जोड़कर ही पूरा इतिहास लिखा जा सकता है।

FAQ

प्र.1: अल-बिरूनी का सबसे बड़ा योगदान क्या है?
👉 भारत का पहला व्यवस्थित तुलनात्मक अध्ययन (किताब-उल-हिंद)।

प्र.2: इब्न बतूता के वृत्तांत से हमें क्या जानकारी मिलती है?
👉 भारतीय नगरों, बाज़ारों, डाक व्यवस्था और व्यापार की जीवंत झलक।

प्र.3: फ्रांस्वा बर्नियर ने भारत को यूरोप से कैसे अलग दिखाया?
👉 उन्होंने कहा कि भारत गरीबी और शोषण का शिकार है क्योंकि यहाँ निजी भूमि स्वामित्व नहीं है।

प्र.4: क्या यात्रियों के विवरण पूरी तरह सही थे?
👉 नहीं, वे अपने सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित थे।

प्र.5: आज इन वृत्तांतों को पढ़ना क्यों ज़रूरी है?
👉 क्योंकि ये हमें भारत के अतीत को “बाहरी दृष्टि” से देखने का अवसर देते हैं।

यात्रियों की आँखों से भारत : निष्कर्ष

दसवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक भारत आए विदेशी यात्रियों ने भारत को अलग-अलग नजरों से देखा।

  • अल-बिरूनी ने इसे वैज्ञानिक और तुलनात्मक ढंग से समझा।
  • इब्न बतूता ने इसे रोमांचक और जीवंत अंदाज़ में प्रस्तुत किया।
  • बर्नियर ने इसे यूरोप से तुलना कर राजनीतिक बहस का हिस्सा बनाया।

इन वृत्तांतों से हम यह सीखते हैं कि भारत न केवल एक विविध समाज था बल्कि विश्व के साथ संवाद और संपर्क में भी था।

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